प्राचीन काल में हिन्दू परिवार की कुलीन महिलाएं समाज के सामने नाच-गाना नहीं करती थीं और प्रसंगवश यह वीरांगनाएं अपनी तलवार पर मुगलों को नचाती थीं । इतना गौरवशाली इतिहास होते हुए भी उसे तोड-मरोड कर संजय लीला भंसाली ने ‘पद्मावती’ चलचित्र के ‘घूमर’ गाने में रानी पद्मावती को नाचते हुए दिखाया है । इससे पहले भी ‘बाजीराव-मस्तानी’ चलचित्र में उन्होंने बाजीराव की पत्नी काशीबाई को नाचते हुए दिखाया था । यह हिन्दू वीरांगनाआें का अपमान है और हिन्दू समाज इसे कदापि सहन नहीं करेगा, ऐसा हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने कहा है ।
अपने मन से इतिहास को तोडने-मरोडनेवाले और मसालेदार चलचित्र बनाकर उसे करोडों रुपए कमानेवाले निर्देशकों के लिए कला की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति स्वतंत्रता लागू नहीं होती । ‘घूमर’ राजस्थानी संस्कृति का एक नृत्य है और एक विशिष्ट समाज के लोग वैसा नाचते हैं । कोई राजकन्या अथवा रानी यह नृत्य नहीं करती थी, क्या यह इतिहास के आधार पर चलचित्र बनानेवाले भंसाली को पता नहीं ? आजकल बॉलीवुड में गुंडों और नेताआें के सामने भी ‘आयटम सॉन्ग’ पर नाचने के लिए अन्य ‘आयटम गर्ल’ लाई जाती है, तो फिर ‘घूमर’ नृत्य दिखाना ही था, तो भंसाली अन्य कलाकारों से करवाते, वहां रानी पद्मावती को नाचते हुए दिखाने का क्या कारण है ? जिस रानी ने अपने शील की रक्षा के लिए ‘जोहर’ (जीवित अग्नि-प्रवेश) किया, उस शीलवती रानी को नाचते दिखाना, रानी पद्मावती का घोर अपमान है । इस विषय में भंसाली हिन्दू समाज से सार्वजनिक क्षमा मांगें और रानी पद्मावती के नृत्य का काल्पनिक गाना चलचित्र से हटाएं, ऐसी मांग हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने की ।
संजय लीला भंसाली महिलाआें का, मां का आदर करते हैं, इसलिए वे पिता के स्थान पर मां का नाम लगाते हैं । तब भी रानी पद्मावती को माता के रूप में देखनेवाले हिन्दू समाज की आदरयुक्त भावनाएं, वे नहीं समझते, यह दुर्भाग्यपूर्ण है । इससे यही सिद्ध होता है कि विवाद उत्पन्न कर पैसे कमाना ही निर्माताआें की शैली बन गई है, ऐसा भी श्री. शिंदे ने कहा ।