हिमाचल सरकार ने कैग की चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए कर्मचारियों और पेंशनरों के बढ़े वेतन-भत्तों एवं एरियर के भुगतान के लिए 800 करोड़ रूपए कर्ज लेने का निर्णय किया है। आर्थिक संकट से जूझ रही राज्य सरकार ने इसी वर्ष जुलाई माह में भी 500 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था। अगर सरकारी खर्चे नहीं घटाये गये और कर्ज लेने की यही रफ्तार रही तो आने वाले एक-दो वर्षों में हर हिमाचली पर करीब एक लाख का कर्ज होगा। इस समय भी हर हिमाचली पर करीब 60 हजार का कर्ज है। अगर पिछले आंकड़ों पर गौर करें तो स्थिति साफ हो जायेगी। वर्ष 2008-09 में हिमाचल सरकार पर 15,427 करोड़ का कर्ज था, जो 2012-13 में बढ़कर 20,765 और 2015-16 में 41,197 रूपए था और जिस गति से सरकार की कर्ज लेने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, यह कर्जा बढ़कर करीब 43,500 करोड़ का आसपास पहुंच चुका है। सरकार अपना खर्चा कम करने को तैयार नहीं है और वैसे भी चुनावी वर्ष में तो प्रदेश सरकार रेवड़ियां बांटने में लगी है। प्रदेश में विभिन्न बोर्डों और नियमों के 40 से अधिक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष हैं, जिनका दर्जा मंत्री के लगभग बराबर का है और वे पूरी सरकारी सुख-सुविधाओं और वेतन-भत्तों का लाभ उठा रहे हैं और इनके वेतन-भत्तों और सुविधाओं पर ही 200 करोड़ रूपए से अधिक खर्च हो रहा है लेकिन प्रदेश सरकार बेफिक्र है।
राज्य सरकारों को उनकी कुल राजस्व प्राप्तियों के आधार पर ही कर्ज लेने का प्रावधान किया गया है लेकिन सरकार की वित्तीय हालत खराब होने के चलते उसे बार-बार कर्ज लेना पड़ रहा है। सरकार की वित्तीय हालत लगातार खराब होती जा रही और अब उसे कर्मचारियों और पेंशनरों के अतिरिक्त भुगतान के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है। विधान सभा में रखी गई कैग की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है और हर साल लेने वाले कर्ज का 76 प्रतिशत हिस्सा पिछले कर्ज का ब्याज चुकाने में ही खर्च हो रहा है जबकि 2011-12 यह केवल 36 प्रतिशत था। कैग ने स्पष्ट किया है कि केन्द्र सरकार की मंजूरी के बिना मार्केट से 38,000 करोड़ से अधिक का कर्ज लेकर प्रदेश सरकार संविधान का भी उल्लंघन कर रही है। सरकार की हालत यह हो गई है कि वह पिछला कर्ज एवं ब्याज चुकाने के लिए बाजार से अधिक ब्याज पर और कर्ज ले रही है और इस प्रकार कर्ज के मक्कड़जाल में उलझती जा रही है। सरकार को औसतन 8.42 प्रतिशत से 8.92 प्रतिशत की दर से ब्याज चुकाना पड़ रहा है। सरकार का खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है जबकि राजस्व घाटा 2012-13, 2013-14, 2014-15 में क्रमश: 576, 1641 और 1944 करोड़ घाटा है।
इस 800 करोड़ रुपए के कर्ज को मिलाकर मौजूदा साल में सरकार अब तक 2,800 करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है। विपक्ष के नेता प्रेम कुमार धूमल सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं। उनका आरोप है कि सरकार अपने खर्चे कम करने की बजाय प्रदेश को कर्ज के जाल में धकेल रही है। अब तक राज्य सरकार पर करीब 43 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज हो चुका है। इसका मुख्य कारण सरकार के आय-व्यय में अंतर होना है। इतना ही नहीं राज्य सरकार 3 साल में 7 से 13 फीसदी की दर से फरवरी, 2016 तक 11,044.44 करोड़ रुपए का कर्ज विभिन्न संस्थाओं से ले चुकी है। इसमें से राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम से 73.27 करोड़ रुपए का कर्ज 12 प्रतिशत ब्याज दर पर लिया है। हालांकि वर्ष 2013-14, 2014-15 व 2015-16 में सरकार ने 4454.83 करोड़ रुपए का कर्ज वापस भी किया है लेकिन यह कर्ज भी दूसरी संस्थाओं के कर्ज लेकर चुकता किया गया है। कैग रिपोर्ट के मुताबिक केन्द्र सरकार के नियमानुसार प्रदेश सरकार अपनी राजस्व प्राप्तियों के आधार पर वर्ष 2015-16 में केवल 1521.79 करोड़ रूपए कर्ज ही ले सकती थी लेकिन उसने 2015-16 में इससे लगभग तीन गुणा ज्यादा 4307.79 करोड़ का कर्ज लिया है़. अगर यही हालत रही तो 2018-19 में राज्य बीमारू राज्यों की श्रेणी में गिना जाने लगेगा।
लगातार कर्ज लिए जाने से राज्य कर्ज के मक्कड़जाल में उलझता जा रहा है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में वर्ष, 2011-12 के दौरान प्रति व्यक्ति ऋण जो 40,904 रुपए था, वह वर्ष 2015-16 में बढ़कर 57,642 रुपए हो गया है। यानी 5 साल में प्रति व्यक्ति ऋण में 41 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। इसके अनुसार 7 साल के भीतर 62 प्रतिशत ऋण का भुगतान करना होगा और राज्य सरकार इसके लिए और अधिक कर्ज लेगी, जिससे हालत सुधरना की बजाय बिगड़ेगी। वेतन व पेंशन पर लगातार खर्च बढ़ने के अलावा अत्यधिक कर्ज के लेने के कारण उसके ब्याज पर अधिक राशि खर्च हो रही है। इसके अलावा सरकारी स्तर पर राजस्व वसूलियों में अनियमितता की बात भी सामने आई है और केवल परिवहन विभाग की लापरवाही से प्रदेश सरकार को 2500 करोड़ से अधिक का चूना लगा है। प्रदेश की अपनी राजस्व प्राप्तियां महज 37 तथा केंद्रीय आर्थिक सहायता व करों में हिस्सेदारी 67 प्रतिशत रही है। राज्य में सार्वजनिक उपक्रमों का घाटा 10820.11 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। राज्य सरकार को खर्चों में कटौती करने के साथ ही राजस्व बढ़ाने के तरीकों पर विचार करना होगा, तभी प्रदेश कर्ज के मक्कड़जाल से निकल पायेगा। हालांकि वर्ष 2005 में प्रदेश सरकार ने प्रदेश को कर्जमुक्ति बनाने और राजस्व घाटा शून्य रखने के लिए नियम बनाया था लेकिन इसके बावजूद सरकार कर्ज के बोझ तले दबती जा रही है और अंतत: यह कर्ज वसूली करों के रूप में हिमाचल की जनता से ही की जायेगी।
विजय शर्मा
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