****गरीबी ***
बहुत महंगे हैं ये पटाखे ,
बहु महंगी हैं ये मिठाई !
की कैसी रात है काली ,
कैसे मनाये हम दिवाली ?
न कपडे हैं पहन ने को ,
न घर ही है सजाने को !
पिता गए हैं कमाने को ,
नहीं घर में है खाने को !!
अमीरों की है दिवाली ,
अमीरों की है खुश हाली !
गरीबो से क्या उन्हें लेना,
गरीबो की तो है बदहाली !!
—–संजय कुमार गिरि