हमारे साधु संतों ने सदा सर्वदा समाज को भलाई का मार्ग दिखाया था। इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए गुरु नानक देव ने समाज को झूठ, प्रपंच और अहंकार को त्याग कर सामाजिक एकता और भाईचारे का पाठ पढ़ाया था। शुक्रवार 22 सितम्बर को उनकी पुण्य तिथि पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम समाज में प्रेम,भलाई और एक दूसरे के सुख दुःख में भागीदारी देकर गुरु नानक देव जैसे संतों को अपनी सच्ची श्रद्धांजलि देंगे।
आज समाज को जिस प्रकार के आडम्बर का सामना करना पढ़ रहा है वह निश्चय ही दुखद और चिंतनीय है। साधु संतों का लिबास ओढ़ कर राक्षसी प्रवृति के लोग अंध विश्वास और आस्था का भ्रम फैलाकर भोले भाले लोगों को अपने चंगुल में फंसा कर आर्थिक और शारीरिक शोषण और दोहन कर रहे है। ऐसे में हमें ढोंगी साधुओं से सावधान रहकर गुरु नानक देव की शिक्षा और उपदेशों को आत्मसात कर राष्ट्र और समाज की हमारी पुरातन सामाजिक संरचना को मजबूत बनाने की जरूरत है।
सुख और दुःख पर गुरु नानक देव के विचार बहुत स्पष्ट और अनुकरणीय है। नानक देव का कहना था इस सृष्टि में दुख ही दुख व्याप्त है। कुछ लोग अपने आप को सुखी समझते हैं, लेकिन देखा जाए तो वे भी किसी न किसी दुख से दुखी हैं। गुरु नानक का यह कथन न केवल शाश्वत सत्य अपितु अजर अमर है। आज भी हमारा समाज दुखों के महासागर में गोते खा रहा है। अमीर से गरीब तक समाज का हर तबका किसी न किसी कारण दुखी है।
संत, महात्माओं में गुरु नानक देव का नाम आदर पूर्वक सवर्ण अक्षरों में दर्ज है। सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म रावी नदी के किनारे पाकिस्तान के गाँव तलवंडी, शेखुपुरा में 15 अप्रैल 1469 में कार्तिक पूर्णिमा, संवत् 1527 को हुआ था। यह स्थान ननकाना साहब के नाम से सिक्खों का पावन तीर्थ बन गया। 22 सितंबर 1539 ईस्वी को इनका परलोकवास हुआ। गुरु नानक देव की 22 सितम्बर को पुण्य तिथि है। इस दिन हमें नानक देव के विचारों का गहन मंथन कर आत्मसात करने की जरुरत है। वे महान समाज सुधारक थे। उनके बताये मार्ग पर चलकर हम अपने समाज को शांति और भलाई का रास्ता दिखा सकते है।
गुरु नानक देव ने ही इक ओंकार का नारा दिया यानी ईश्वर एक है। ईश्वर सभी जगह मौजूद है। हम सबका पिता वही है इसलिए सबके साथ प्रेमपूर्वक रहना चाहिए । उनका कहना था किसी भी तरह के लोभ को त्याग कर अपने हाथों से मेहनत कर और न्यायोचित तरीकों से धन का अर्जन करना चाहिए। कभी भी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए बल्कि मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरतमंदों की भी मदद करनी चाहिए। धन को जेब तक ही सीमित रखना चाहिए। उसे अपने हृदय में स्थान नहीं बनाने देना चाहिए अन्यथा नुकसान हमारा ही होता है। स्त्री-जाति का आदर करना चाहिए। गुरु नानक देव, स्त्री और पुरुष सभी को बराबर मानते थे। तनाव मुक्त रहकर अपने कर्म को निरंतर करते रहना चाहिए तथा सदैव प्रसन्न रहना चाहिए। संसार को जीतने से पहले स्वयं अपने विकारों और बुराईयों पर विजय पाना अति आवश्यक है। अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है। इसलिए अहंकार कभी नहीं करना चाहिए बल्कि विनम्र होकर सेवाभाव से जीवन गुजारना चाहिए। गुरु नानक देव पूरे संसार को एक घर मानते थे । संसार में रहने वाले लोगों को एक ही परिवार का हिस्सा। उनका कहना था लोगों को प्रेम, एकता, समानता, भाईचारा और आध्यात्मिक ज्योति का संदेश देना चाहिए ।
इनके उपदेश का सार यही था कि ईश्वर एक है उसकी उपासना हिंदू मुसलमान दोनों के लिये हैं। मूर्तिपूजा, बहुदेवोपासना को अनावश्यक कहते थे। हिंदु और मुसलमान दोनों पर इनके विचार का प्रभाव था। कुछ लोगों ने तत्कालीन शासक इब्राहीम लोदी से नानक देव की शिकायत की। जिस पर नानक देव को कारावास में डाल दिया गया। पानीपत की लड़ाई में जब इब्राहीम हारा और बाबर के हाथ में राज्य गया तब कारावास की यंत्रणा से रिहाई मिली। गुरुनानक का व्यक्तित्व असाधारण था। उनमें पैगम्बर, दार्शनिक, राजयोगी, गृहस्थ, ,सुधारक, कवि, संगीतज्ञ, देशभक्त, बंधुत्व आदि सभी के गुण विद्यमान थे। उनमें विचार-शक्ति का अपूर्व सामंजस्य था। उन्होंने पूरे देश की यात्रा की। लोगों पर उनके विचारों का बहुत प्रभाव पड़ा। उनकी रचना जपुजी का सिक्खों के लिए वही महत्त्व है जो हिंदुओं के लिए गीता का है। गुरु नानक आरंभ से ही भक्त थे। उनका ऐसे मत की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक था, जिसकी उपासना का स्वरूप हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को समान रूप से हो। उन्होंने घर बार छोड़ दूर देशों में भ्रमण किया जिससे उपासना का सामान्य स्वरूप स्थिर करने में उन्हें बड़ी सहायता मिली। उन्होंने कबीरदास की निर्गुण उपासना का प्रचार पंजाब में आरंभ किया ।
एक बार वे गंगा तट पर खड़े थे और उन्होंने देखा की कुछ व्यक्ति पानी के अन्दर खड़े हो कर सूर्य की ओर पूर्व दिशा में देखकर पानी डाल रहें हैं उनके स्वर्ग में पूर्वजों के शांति के लिए। गुरु नानक जी भी अपने दोनों हाथों से पानी डालने लगे पर अपने राज्य पूर्व में पंजाब की ओर खड़े हो कर। यह देख लोगों नें उनकी गलती के बारे में बताया और पूछा ऐसा क्यों कर रहे थे तो उन्होंने उत्तर दिया अगर गंगा का पानी स्वर्ग में आपके पूर्वजों तक पहुँच सकता है तो पंजाब में मेरे खेतों तक क्यों नहीं पहुँच सकता क्योंकि पंजाब तो स्वर्ग के पास है।
गुरु नानक सन् 1539 ई॰ में अमरत्व को प्राप्त हो गए। परन्तु उनके उपदेश और शिक्षा अमरवाणी बनकर हमारे बीच उपलब्ध हैं जो आज भी हमें जीवन में अहंकार त्याग कर सादा जीवन और उच्च विचारों को अपनाने लिए प्रेरित करती हैं ।
– बाल मुकुन्द ओझा
वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार
डी-32, माॅडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर
मो.- 9414441218