बाहरी दिल्ली , अखिल भारतीय उर्दू हिंदी एकता अंजुमन द्वारा देश के मशहूर शायर निदा फ़ाज़ली की याद में एक शानदार मुशायरा का आयोजन कल दोपहर मदीना मंजिल वाई ब्लाक, मंगोलपुरी इलाके में स्थित शायर असलम बेताब के संयोजन में किया गया जिसकी अध्यक्षता शायर साज़िद रज़ा खान ने एवं मुख्य अतिथि पूर्वांचल राष्ट्रीय कांँग्रेस के अध्यक्ष सुरेन्द्र कौशिक रहे ! मुख्य अतिथि साज़िद रज़ा खान ने शायर निदा फ़ाज़ली के व्यक्तित्व एवं कृत्तव पर प्रकाश डाला एवं उनकी एक नज़्म भी पढ़ी , २ बजे से लेकर लगभग शाम 7 बजे तक चलने वाले इस शानदार मुशायरे में दिल्ली और दिल्ली के आसपास से शिरकत करने वाले शायरों एवं कवियों ने अपना बेहतरीन और बेहद लाजबाब काव्य पाठ किया जिनमें आरिफ़ देहलवी , रामश्याम हसीन , दुर्गेश अवस्थी , संजय गिरि , अरशद कमर , प्रेम सागर ‘प्रेम’ , सिकंदर मिर्ज़ा , अफजाल देहलवी , जगदीश मीणा , राजेश तंवर , विनोद कुमार , बशीर चिराग , शायरा निवेदिता झा और वसुधा कानुप्रिया प्रमुख रूप से रहीं ,
शायरों ने जो रचनाएं पढ़ी ——
दिल की बाजी हार के देखो
अपना सब कुछ वार के देखो
दौलत के चश्मे के जरिये
नज़ारे संसार के देखो –असलम बेताब
‘बदली का रंग नयनों के काजल सा हुआ है
सावन की फुंहारों ने मेरे मन को छुआ है’ –जगदीश मीणा (गीत)
बड़े खुलूस से मंदिर को रोज़ जाता है
वो जिसके नाम से है शख़्स थरथराता है
उतारा जाता है चुन- चुन के सर उसी गुल का
हमारे शहर में जो फूल मुस्कुराता है-शायर रामश्याम हसीन (ग़ज़ल )
खो गयी है किधर जिंदगी आजकल
रो रही है इधर हर ख़ुशी आजकल
जो लगाते रहे मुझको अपने गले
क्यों, वही बन गए अजनबी आजकल-दुर्गेश अवस्थी (ग़ज़ल )
‘करें आज रोशन धरा आसमान
लिए हाथ गीता दिलों में कुरआन
नहीं बैर अपना किसी से जनाब
विधाता बनता सभी के विधान ‘-संजय गिरी
‘नही मिलता है तिनका भी ये आलम है तरक्की का
कि मैंने आज इक चिड़िया को झाडू नोचते देखा
न जाने कौन सी मंज़िल पे रहती। है मेरी मंज़िल
कभी ऊपर को जाता हूँ ,कभी नीचे को आता हूँ-राजेश तंवर
अखिल भारतीय उर्दू हिंदी एकता अंजुमन द्वारा मुशायरे में अपना लाजवाब एवं खूबसूरत कलाम पेश करने के लिए मंच के गणमान्य अतिथियों द्वारा कवि एवं शायरों को उर्दू- हिंदी सेवा सम्मान से भी नवाजा गया ! मुशायरे की निज़ामत शायर असलम बेताब ने बेहद लाजवाब और शायराना अंदाज़ में किया !
