भाजपा त्रिपुरा में शून्य से सत्ता के शिखर पर पहुँचने में सफल हो गई है। संभवत आजादी के बाद यह पहला अवसर है कि कोई राजनीतिक दल डेढ़ प्रतिशत वोट से 50 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल हुआ है। भाजपा ने त्रिपुरा में 60 सदस्यीय विधानसभा में 40 का आंकड़ा छू लिया है । पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में शनिवार को प्रात विधानसभा चुनावों की मतगणना शुरू हुई। इनमें सबसे बड़े राज्य त्रिपुरा में पिछले 20 वर्षों से वामपंथियों की सरकार काबिज थी जिसके मुख्यमंत्री माणिक सरकार काफी लोकप्रिय थे।अगर 1988 से 1993 तक कांग्रेस नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को छोड़ दें तो त्रिपुरा में 1978 से लेकर अब तक वाम मोर्चा की सरकार थी। वर्तमान मुख्यमंत्री माणिक सरकार 1998 से सत्ता में हैं। वाममोर्चा पिछले पांच विधानसभा चुनावों में अपराजेय रहा है। माकपा के दिग्गज नेता माणिक सरकार ने चार कार्यकाल पूरे किए हैं। मतगणना के दौरान लोगों के दिल की धड़कन शुरू से ही ऊँचे नीचे हो रही थी। रुझानों में पल-पल बदलाव हो रहा था । दो तीन सीटों के अंतराल पर भाजपा और वामपंथी टिके हुए थे। मगर आखिर में भाजपा वामपंथियों के इस मजबूत गढ़ को ढहाने में सफल हुई। कांग्रेस का यहाँ पूरी तरह सफाया हो गया है। पूर्वोत्तर के इस राज्य में भाजपा की यह बड़ी जीत है और पार्टी नेता पूरी तरह बल्ले बल्ले है। नागालैंड में भी भाजपा ने अपनी जीत दर्ज करली है। बताया जाता है कि भाजपा की इस जीत के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बड़ा हाथ है। संघ कई सालों से इस क्षेत्र में कार्यरत था।भाजपा के त्रिपुरा में शानदार प्रदर्शन की एक बड़ी वजह है राज्य में सत्ता विरोधी लहर। मेघालय में त्रिशंकु की स्थिति बन रही है। मेघालय में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जरूर उभरी है मगर उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। एन पी पी और भाजपा यदि आपस में मिल जाती है तो यहाँ भी भाजपा सहयोगियों की सरकार बन जाएगी। इसके साथ ही पूर्वोत्तर से वामपंथियों के साथ साथ कांग्रेस का भी सफाया हो गया है।
धनी सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पूर्वोत्तर में सात राज्यों को मिला कर लोकसभा की कुल 24 सीटें हैं। इनमें असम में सर्वाधिक 14 सीटें है। आगामी लोक सभा चुनाव में इनका बड़ा महत्त्व है। 2016 में भाजपा ने असम में सत्तारूढ़ कांग्रेस को बड़े फर्क से हराया और यहां की सत्ता पर काबिज हो गई। असम में मिली सफलता के बाद भाजपा ने अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में भी अच्छा प्रदर्शन किया। पार्टी पर करीब से नजर रखने वाले मानते हैं कि उत्तरपूर्वी राज्यों में पैठ बनाने की कोशिश कर रही भाजपा के लिए ये एक निर्णायक जीत थी। ।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने त्रिपुरा चुनाव जीतने के लिए कड़ी मेहनत की थी।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने त्रिपुरा में धुआंधार चार रैलियां की है और राज्य सरकार को जमकर आड़े हाथों लिया। उन्होंने लगातार राज्य का विकास और युवाओं को रोजगार देने का मुद्दा पूरे चुनाव के दौरान उठाया। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत कई पार्टी के बड़े नेताओं ने यहां पर रैलियां की।विधानसभा चुनाव से ठीक पहले त्रिपुरा में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर कमल का दामन थामा। इसका भी सीधा फायदा यहां पर बीजेपी को मिला। ।भारतीय जनता पार्टी ने आदिवासी मतदाताओं पर खासा ध्यान दिया। भाजपा प्रमुख अमित शाह दो-तिहाई बहुमत से जीत हासिल करने का दावा किय था। पिछले दो दशकों में यह पहली बार है जब भारतीय जनता पार्टी गठबंधन के साथ प्रदेश की सभी 60 सीटों पर चुनाव लड़ कर दो तिहाई सीटों पर जीतने में सफल हुई। इसी के साथ त्रिपुरा से गायब हुआ लाल और भाजपा के दफ्तर में उड़ने लगा गुलाल।
भाजपा सरकार को यहाँ अलग राज्य बनाने वालों का भी सामना करना पड़ेगा। राज्य में आदिवासियों के एक धड़े की त्रिपुरा से अलग तिपरालैंड बनाने की मांग लंबे समय से रही है। इनका कहना है कि राज्य में आदिवासियों की पहचान ख़तरे में है। खेर यह आगे की बात है फिलहाल भाजपा देशभर में में त्रिपुरा विजय का जश्न रही है। पूर्वोत्तर में असम के बाद त्रिपुरा में भाजपा के पंख फैलने से पार्टी का विस्तार हुआ है और एक राष्ट्रीय पार्टी सत्ता पर काबिज हुई है। कांग्रेस पार्टी के लिए यह किसी बड़े झटके से काम नहीं है। इसका असर इस साल होने वाले विधान सभा चुनावों पर पड़े बिना नहीं रहेगा।
1940 के दशक से ही त्रिपुरा में आदिवासी और गैरआदिवासी आबादी के बीच टकराव की स्थिति रही है। भारत के विभाजन और बांग्लादेश बनने के बाद बड़ी संख्या में इस राज्य में पलायन हुआ था। त्रिपुरा में आदिवासियों के लिए विधानसभा की एक तिहाई सीटें रिजर्व हैं। भाजपा ने त्रिपुरा में आईपीएफटी से चुनावी गठबंधन कर विजयश्री हासिल की है। त्रिपुरा देश का तीसरा सबसे छोटा राज्य है। देश की राजनीति में त्रिपुरा का कोई ख़ास हस्तक्षेप नहीं है। मगर बीजेपी के जीतने से वामपंथी पार्टियों और कांग्रेस के लिए गहरा झटका लगा है। भाजपा को हिंदी भाषी लोगों की पार्टी कहा जाता है मगर पूर्वोत्तर के राज्यों में लगातार जीत के बाद पार्टी की अहिन्दी भाषियों पर पकड़ मजबूत हुई है।
बाल मुकुंद ओझा
लेखक और फ्रीलान्स पत्रकार