
मनोज तोमर/विजय न्यूज ब्यूरो
फरीदाबाद। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुनामी लहरों से अपना राजनैतिक अस्तित्व बचाने में जुटी कांग्रेस पार्टी हरियाणा में हाशिये पर जा पहुंची है। गुटबाजी में उलझे प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को यह नहीं सूझ रहा कि वो आखिर अपना डूबता जहाज कैसे बचाये। कांग्रेस की करारी हार के दौर में भी अपनी सीट फरीदाबाद जिले से बचाने वाले पूर्व कांग्रेसी मंत्री महेंद्र प्रताप भी असमंजस की स्थिति में है कि वो व उनका परिवार अब यह तय नहीं कर पा रहा कि वो बडखल विधानसभा से ही चुनाव लड़े या एनआईटी फरीदाबाद से भागय आजमाए। दरअसल जब से फरीदाबाद जिले में विधानसभा क्षेत्रों के नाम बदले है, तभी से महेंद्र प्रताप का परिवार पशोपेश में था कि आखिर गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र तिगांव से वो किस्मत आजमाये या फिर अपने आधे-अधूरे पुराने क्षेत्र से। ऐसे में उन्होंने शुरु में बडखल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। हालांकि यह पंजाबी बाहुल्य क्षेत्र था परंतु अनंगपुर सहित गुर्जर बिरादरी के आधा दर्जन गांवों को बडखल क्षेत्र में शामिल किया गया था। इसी के चलते महेंद्र प्रताप यहां से जैसे-तैसे एक बार तो जीत गए क्योंकि उस वक्त उनकी प्रतिद्वंद्वी सीमा त्रिखा को ज्यादा राजनैतिक तर्जुबा नहीं था। धनबल में भी वो महेंद्र प्रताप परिवार से बहुत कमजोर थी परंतु दूसरी बार के चुनावों में सीमा त्रिखा ने महेंद्र प्रताप परिवार को करारी शिकस्त दी। खैर अब तो सीमा त्रिखा राजनीति की पूरी खिलाड़ी बन चुकी है और धनबल से भी वो उनका सामना कर सकती है। ऐसे में बडखल विधानसभा क्षेत्र अब महेंद्र प्रताप परिवार के लिए सुरक्षित नही रहा है। यही कारण है कि महेंद्र प्रताप परिवार अब नई विधानसभा क्षेत्र तलाश रहा है। सूत्रों का कहना है कि संभव है कि वो आगामी चुनाव खुद न लड़े व अपने पुत्र व राजनैतिक वारिस विजय प्रताप को एनआईटी क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारे। जानकारों का कहना है कि महेंद्र प्रताप अब भविष्य में खुद के बजाए विजय प्रताप पर दाव आजमाना चाहते है, जबकि उनके भाई विवेक प्रताप भी अपने आपको बड़ा नेता समझते है। ऐसे में यह इतना आसान नहीं होगा कि महेंद्र प्रताप, विजय प्रताप को आगे कर पाये । इसके लिए उन्हें पारिवारिक घमासान का सामना करना पड़ सकता है। वैसे विजय प्रताप भी अभी तक तय नहीं कर पाये है कि वो लोकसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमाए या विधानसभा चुनावों में। हरियाणा में फिलहाल कांग्रेस का लीडर कौन हो, इसी पर ही एक राय नहीं बन पाई है, जबकि विजय प्रताप भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट से ताल्लुक रखते है, जबकि शहर के दर्जनों नेता ऐसे है, जो अशोक तंवर गुट से जुड़े है, ऐसे में पहले तो उन्हें टिकट की लड़ाई लडऩी होगी, उसी के बाद पता चलेगा कि वो किस क्षेत्र से किस्मत आजमाएंगे। जानकारों का कहना है कि विजय प्रताप नेता कम नेता पुत्र ज्यादा है। वैसे भी समाजसेवा से उनका कोई खास लेना-देना नहीं है, वो बड़े प्रापर्टी डीलर है और इसी में उनकी अधिक रुचि है। वहीं उनका कार्यकर्ताओं से भी सीधा कोई संपर्क नहीं है और अधिकतर उनसे संपर्क करना मानो धरती पर भगवान ढूंढने के बराबर है। हालांकि राजनीति बरसों से उनके परिवार में रही है परंतु अब वो पुरानी बात नहीं रही है। महेंद्र प्रताप, ए.सी. चौधरी, राजेंद्र बीसला जैसे पुराने कांग्रेसी नेता गुजरे जमाने के नेता होकर रह गए है। ऐसे में इनके उत्तराधिकारियों को कांग्रेस पार्टी घास भी डालेगी या नहीं, इस पर भी अभी प्रश्रचिन्ह है। कुल मिलाकर महेंद्र प्रताप परिवार का राजनैतिक सितारा फिलहाल गर्दिश में है। अब देखना यह है कि विजय प्रताप उसे उबार पाते है या नहीं, ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।