हमारे देश में अगर कोई किसी की हत्या या आपराधिक गतिविधियों में लिप्त पाया जाये तो देर सवेरे ऐसे लोगों को सजा मिल जाती है। लेकिन लोगों की प्रदूषण से होने वाली मौतों के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं होता है, क्योंकि हमारे देश के तंत्र में इसे अपराध माना ही नहीं जाता है। इसी कारण प्रदूषण की इतनी समस्याएं उत्पन्न हुई है। जीवित रहने के लिए सांस लेना जरुरी है लेकिन देश के लोगों के लिए सांस लेना मुश्किल हो गया है, क्योंकि देश के तमाम शहरों और जिलों की हालत ऐसी ही हो गई है तथा इसमें सबसे बुरी हालत राजधानी दिल्ली की है, क्योंकि दिल्ली के लोगों की उम्र प्रदूषण के कारण 6 वर्ष तक कम हो रही है, इसीलिए दिल्ली की हवा को हत्यारी हवा भी कह सकते हैं। कुछ ऐसे ही हालात देश के दूसरे हिस्सों के भी हैं और यहां के लोगों की उम्र भी वायु प्रदूषण की वजह से 3.5 से 6 वर्ष तक कम हो रही है। यह हालात बेचैन करने वाले हैं। भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में से एक है और वायु प्रदूषण देश के लोगों की सेहत के लिए सबसे बड़ा खतरा है। लेकिन हमारे देश के लोग इस खतरे को लेकर कितने संवेदनशील हैं, यह आंकड़े बताते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के द एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट द्वारा एयर क्वालिटी इंडेक्स के आधार पर तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार वायु प्रदूषण घटाने पर कार्य करें तो लोगों का जीवन औसतन 4 बर्ष बढ सकता है।
राष्ट्रीय मानकों का पालन करने पर देश के लोग औसतन 1 वर्ष ज्यादा जीवित रह सकते हैं। राजधानी दिल्ली द्वारा अगर डब्ल्यूएचओ के मानकों का पालन किया जाए तो दिल्ली के लोग 9 वर्ष ज्यादा जीवित रह सकते हैं, तथा दिल्ली में वायु प्रदूषण से जुड़े राष्ट्रीय मानकों का पालन किया जाए तो यहां के लोगों की उम्र 6 वर्ष तक बढ़ सकती है। इस रिपोर्ट में देश के 50 सबसे प्रदूषित जिलों के आंकड़े दिए गए हैं, इनमें दिल्ली के अतिरिक्त आगरा, बरेली, लखनऊ, कानपुर, पटना तथा देश के अन्य बड़े शहर शामिल हैं। देश के राष्ट्रीय मानकों का पालन करने पर इन जिलों में रहने वाले लोगों की उम्र 3.5 वर्ष से 6 वर्ष तक बढ़ सकती है ।एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स की मदद से यह ज्ञात किया जाता है कि वायु प्रदूषण कम हो जाए तो औसत के मुकाबले लोगों की उम्र कितना बढ़ सकती है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार प्रदूषण की मात्रा बताने वाले पीएम 2.5 के स्तर को 70 से 20 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर तक कम कर दिया जाय तो वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में लगभग 15% तक की कमी आ सकती है। देश के राष्ट्रीय मानकों के अनुसार हमारे देश में पीएम 2.5 का स्तर 40 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर होना चाहिए और पीएम 10 के लिए यह स्तर 60 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर होना चाहिए, लेकिन भारत में पीएम 2.5 के मानक डब्ल्यूएचओ के मानकों से 4 गुना ज्यादा है। जबकि पीएम 10 के मानक तीन गुना ज्यादा हैं। हवा में मौजूद ये पीएम कण सांस द्वारा शरीर और फेफड़ों में पहुंच जाते हैं और अपने साथ जहरीले केमिकल्स को शरीर में पहुंचा देते हैं। जिससे फेफड़े और ह्रदय को क्षति पहुंचती है।
सर्दियों के मौसम में तापमान में कमी आने के साथ ही इन दोनों कणों का स्तर वायुमंडल में बढ़ता जाता है। यानी नवंबर से फरवरी तक हालत बहुत गंभीर और खतरनाक हो जाते हैं। एक अमेरिकन इंस्टिट्यूट की ग्लोबल एक्सपोजर टू एयर पोल्यूशन एंड इट्स डिजीज बर्डन रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की 92 फीसदी आबादी उन इलाकों में रहती है, जहां की हवा स्वच्छ नहीं हैं। प्रदूषण एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है और भारत इसका सबसे बड़ा शिकार बनता जा रहा है, क्योंकि देश के कई शहरों में सांस लेना, मौत को मौन स्वीकृति देने जैसा हो गया है।
ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कॉर्पोरेशन एवं डेवलपमेंट के अनुसार वर्ष 2060 तक वायु प्रदूषण से दुनिया को 135 लाख करोड रुपए का नुकसान होगा और यह राशि हमारी मौजूदा जीडीपी से सिर्फ 10 लाख करोड़ रुपए कम है। ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कॉर्पोरेशन के अनुसार यह नुकसान बीमारी की वजह से होने वाली छुट्टियों, इलाज पर होने वाले खर्च, और खेती में कम उत्पादन के कारण होगा तथा इससे चीन, रशिया, भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। प्रदूषण श्वसन संबंधी परेशानियां देने के साथ- साथ लोगों के हृदय को भी लगातार कमजोर बना रहा है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली के लोगों में हार्ट अटैक का खतरा पिछले 20 वर्षों में 30% तक बढ़ गया है। इसके लिए वायु प्रदूषण ही जिम्मेदार है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडिम्बरा और नीदरलैंड्स के कुछ रिसर्चर्स ने भी अपने प्रयोग में बताया है कि वाहनों से निकलने वाले धुएं के नैनो पार्टिकल्स ब्लड स्ट्रीम में शामिल होकर दिल तक पहुंच सकते हैं। वाहनों के धूंए से निकलने वाले PM कण बहुत बारीक होते हैं। इतने बारीक होते हैं कि यह फेंफड़ों के फिल्डर सिस्टम को भी पार कर जाते हैं। डॉक्टरों के मुताबिक प्रदूषण के यह कण दिल में रक्त पंप करने वाली आर्टरीज में धीरे – धीरे जमा होने लगते हैं और आर्टरीज में इनकी एक परत जमा होने लगती है, जिससे शरीर की धमनियां सिकुड़ने लगती हैं और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। कुछ प्रदूषक चुंबकीय कण दिमाग तक भी पहुंच जाते हैं और दिमागी बीमारियों का कारण बनते हैं। समाज का भला करने के लिए अच्छी नियत का होना जरुरी है, लेकिन हमारे देश के नेता कीमती वक्त उन मुद्दों पर बर्बाद कर देते हैं जिनका जनता के स्वच्छ और सुरक्षित जीवन से कोई लेना देना नहीं होता है। यह बहुत बड़ी विडंबना है कि हमारे देश में जात- पात, धर्म, राजनीति, जीडीपी, आर्थिक विकास पर जमकर विचार विमर्श होता है, लेकिन साफ हवा, पानी की कोई बात नहीं करता है। प्रदूषण हमारे देश के नेताओं की प्राथमिकताओं में है ही नहीं, देश में प्रदूषण से लाखों लोगों की मौत हो रही है, लेकिन देश के नेताओं के लिए यह कोई मुद्दा नहीं है। भारत में राजनीतिक पार्टियों के मेनिफेस्टो में तरह-तरह के गैरजरूरी मुद्दे मिल जाएंगे लेकिन आम लोगों को स्वच्छ हवा देने का वादा कोई नहीं करता है। प्रदूषण कम करने की जिम्मेदारी सरकार के साथ – साथ नागरिकों की भी है। साफ हवा में सांस लेना चाहते हैं और चाहते हैं कि आपके बच्चे साफ हवा में सांस ले, तो वातावरण को प्रदूषण मुक्त बनाने में अपनी भूमिका जरूर निभानी चाहिए तथा अपने जनप्रतिनिधियों से स्वच्छता का अधिकार मांगना चाहिए।
वर्तमान समय में प्रदूषण के प्रभावों, इससे संबंधित रिपोर्टों और आंकड़ों की बात हो चुकी है, लेकिन सरकारें और आम नागरिक इस पारिस्थितिक त्रासदी से राहत पाने के लिए क्या कर सकते हैं, इसके कुछ सुझाव रखता हूं, जिन्हें सरकार और आम नागरिक अपना सकते हैं। एक साफ सुधरी सोच कैसे लोगों का जीवन बदल सकती है इसके लिए नीदरलैंड का एक उदाहरण लेते हैं। निदरलैंड के रॉटरडैम शहर को उसके ऐतिहासिक आर्किटेक्चर के लिए जाना जाता है, लेकिन किसी जमाने में रॉटरडेम शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक था, लेकिन डच डिजाइनर और इनोवेटर डार्न रोजगार्ड ने काले धुएं से मुक्ति पाने के लिए जो डिजाइन तैयार किया है वह भारत के शहरों को शुद्ध हवाओं वाला वातावरण दे सकता है। दुनियां का पहला स्मोक फ्री टावर जिसे नीदरलैंड्स ने वर्ष 2015 में अपने रोटरडेम शहर में खड़ा किया था। यह ओजोन फ्री टेक्नोलॉजी पर आधारित है तथा यह टावर प्रति घंटे 30, 000 क्यूबिक मीटर प्रदूषित हवा को साफ कर सकता है। 7 मीटर ऊंचे इस स्मोक फ्री टावर को इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह गंदी हवा को किसी वैक्यूम क्लीनर की तरह अपने अंदर खींच सके। यह टावर गंदी हवा को फ़िल्टर करता है और स्मोक फ्री एयर को बाहर निकालता है। नीदरलैंड्स में हुए आउटडोर टेस्ट के दौरान यह पाया गया है कि यह टावर 60 फीसदी प्रदूषित हवा को शुद्ध कर सकता है। यह पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे खतरनाक कणों को 75 फीसदी तक अपने अंदर अवशोषित लेता है, इसके बाद शुद्ध टावर के चारों तरफ फैल जाती है। इस टेक्नोलॉजी की मदद से भारत के कई शहरों के प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है। रोजगार्ड खुद इसके लिए अपनी इच्छा जाहिर कर चुके हैं, लेकिन इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को आगे आने की जरूरत होगी। इस प्रोजेक्ट को भारत में लगाने से देश की प्रदूषण वाली समस्या का निदान हो सकता है। इस प्रदूषण के आपातकाल में आम लोग किस प्रकार सुरक्षित रह सकते हैं इसके लिए कुछ कारगर उपाय-
- 5 रुपये वाला या डिस्पोजल मास्क कभी नहीं खरीदना चाहिए। यह प्रदूषित कणों से नहीं बचा सकता, ऐसे मास्क का उपयोग करना चाहिए जिससे कार्बन फिल्टर लेयर हो।
- संभव हो तो घर पर एयर प्यूरीफायर जरूर लगवाएं यह वैक्यूम क्लीनर की तरह कार्य करते हैं और हवा में मौजूद खतरनाक कणों को फ़िल्टर कर देते हैं।
- दिन के मुकाबले रात में प्रदूषण का खतरा ज्यादा होता है। तापमान कम हो जाने से हवा में मौजूद प्रदूषक की मारक क्षमता अधिक हो जाती है, इसीलिए रात में बाहर जाने से सावधानी बरतनी चाहिए।
- घर के अंदर लगाए जाने वाले कुछ पौधे जहरीली हवा को साफ करने में मददगार साबित हो सकते हैं उनका उपयोग करना चाहिए। जैसे स्नेक प्लांट, पीस लिली, स्पाइडर प्लांट, बीपिंग फिग ये पौधे घर के अन्दर की प्रदूषित हवा को 50 फीसदी तक कम कर सकते हैं।
अश्विनी शर्मा
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
पत्रकारिता एवं जनसंप्रेषण( M. A. JOURNALISM AND MASS COMMUNICATION )
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