जीवन मरण का सवाल बन चुकी दिल्ली की बवाना विधानसभा सीट पर जीत हासिल करते हुए आम आदमी पार्टी ने इस सीट को बरकरार रखा और भाजपा के हाथों लगातार मात खा रही पार्टी ने हार की इस श्रृंखला को तोड़ दिया। वहीं कांग्रेस एक बार फिर खाली हाथ रह गई। कांग्रेस ने भी अपनी पूरी ताकत यहां झोक रखी थी। वह यह सीट जीतकर विधानसभा में अपना खाता खोलने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाये हुए थी लेकिन उसका यह मंसूबा एक बार फिर धरा का धरा रह गया। मतगणना के दौरान शुरुआत में आम आदमी पार्टी को टक्कर दे रही कांग्रेस अंततः परिणाम आते आते तीसरे नंबर पर खिसक गई। इस जीत की महत्ता इस लिहाज से भी बड़ी है कि आम आदमी पार्टी फिलहाल बिखरने से बच गई है।
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित उत्तरी बाहरी दिल्ली की बवाना विधानसभा सीट मतदाताओं की संख्या (2.94 लाख) के लिहाज से दिल्ली के सबसे बड़े विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। झुग्गी झोपड़ियां, ग्रामीण इलाके व पूर्वांचली मतदाताओं की बहुतायत वाली इस सीट पर मिली जीत ने अरविंद केजरीवाल को एक तरह से नवजीवन प्रदान कर दिया है। इस जीत ने पार्टी में संभावित एक बड़ी टूट को संभवतः रोक दिया है। हर छोटे बड़े मुद्दे पर अपना गला फाड़ने वाले आप मुखिया अपने स्वभाव के विपरीत पिछले कुछ दिनों से आश्चर्यजनक रूप से खामोश हैं। अपनी ही कैबिनेट के पूर्व सहयोगी कपिल मिश्रा द्वारा लगाये गये भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों पर खामोशी की चादर ओढ़े अरविंद केजरीवाल के लिए यह जीत बेहद आवश्यक थी। अगर यह सीट उनके हाथ से निकल जाती तो उनके करिश्माई नेतृत्व पर एक बड़ा सवालिया निशान लग जाता। महज तीन साल पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान 70 में से 67 सीटें जीतकर इतिहास रच देने वाली आम आदमी पार्टी को उसके बाद हुए तमाम चुनावों में लगातार मुंह की खानी पड़ी है।
नगर निगम चुनाव और राजौरी गार्डन विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में जीत दर्ज कर खुद को महाबली समझ बैठी भाजपा को महज चार महीनों बाद ही आप के हाथों यह करारी हार मिली है। दूसरी तरफ कांग्रेस के हाथ एक बार फिर निराशा ही लगी है। दरअसल, उत्तरी बाहरी दिल्ली में स्थित इस विधानसभा क्षेत्र में अति आत्मविश्वास की वजह से भाजपा अभी चार महीने पूर्व संपन्न राजौरी गार्डेन विधानसभा उपचुनाव की जीत को दोहरा नहीं पाई। वह आप के दलबदलू विधायक वेदप्रकाश के जरिए इस सीट को अपनी झोली में मानकर चल रही थी। वहीं आम आदमी पार्टी ने इस सीट को अपने कब्जे में बनाए रखने के लिए अपनी पूरी कैबिनेट को ही यहां उतार रखा था। परिवहन मंत्री व दिल्ली प्रदेश आम आंदमी पार्टी अध्यक्ष गोपाल राय ने तो यहीं डेरा ही डाल दिया था। ऐसा नहीं कि भाजपा ने यहां कोशिश नहीं की थी। मनोज तिवारी से लेकर तमाम नेताओं ने गली गली की खाक छानी लेकिन झुग्गी-झोपड़ी, गांव और बड़ी संख्या में पूर्वांचली वोट वाले इस विधानसभा क्षेत्र में आखिरकार आम आदमी पार्टी की मेहनत रंग लाई और आप उम्मीदवार रामचन्द्र 59,886 मत पाकर भाजपा उम्मीदवार वेदप्रकाश को करीब 24 हजार मतों से पराजित करने में कामयाब रहे।
वैसे कांग्रेस इस सीट से बहुत ज्यादा उम्मीदें लगाये हुए थी। लेकिन नतीजों ने उसकी उम्मीदों पर एक बार फिर पानी फेर दिया। इस सीट को जीतकर विधानसभा में अपना खाता खोलने का ख्वाब देख रही पार्टी ने इस बार यहां तीन बार के विधायक रहे सुरेंद्र कुमार को टिकट दिया था। उसे पूरा भरोसा था कि सुरेंद्र कुमार उसके तारणहार बनकर उभरेंगे। इस उम्मीद के पीछे राजौरी गार्डेन विधानसभा उपचुनाव के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी का दूसरे नंबर पर होने के साथ ही साथ अभी हाल ही में गुजरात से राज्यसभा चुनाव में सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल की जीत से मिली नई ऊर्जा थी। लेकिन अफसोस पार्टी एक बार फिर खाली हाथ रह गई। शुरुआती दौर में आप को कड़ी टक्कर देने के बाद कांग्रेस लगातार पिछड़ती हुई अंततः तीसरे स्थान पर पहुंच गई। दूसरे स्थान पर रहे भाजपा प्रत्याशी वेद प्रकाश को जहां 35,834 वोट मिले वहीं, यहां से तीन बार विधायक रह चुके कांग्रेस उम्मीदवार सुरेन्द्र कुमार महज 31,919 वोट हासिल कर तीसरे स्थान पर खिसक गये।
बद्रीनाथ वर्मा