मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में मूल्यावन भोजन के अभाव से यदि किसी व्यक्ति की मृत्यू हो जाए तो विकास की बात करने वाले लोग स्वयं ही विकास की कडी आलोचना करने लगते हैं किंतु भारत के संदर्भ में यह जूमला थोडा अलग है। हाल ही में अंतराष्ट्रीय स्तर पर वैश्विक भूख सूचकांक 2017 की सुची इंटरनेशनल फूड पाॅलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा प्रदर्शित की गई। वैश्विक भूख सूचकांक का मुख्य उद्देशय विश्व के विभिन्न देशों में भूख से वंचित तबकों की पहचान करना तथा उन्हें देश विशेष के द्वारा उचित मात्रा में गुणवत्ता पूर्ण भोजन उपलब्ध कराने हेतु दिशानिर्देश जारी करना है। इंटरनेशनल फूड पाॅलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के रिपोर्ट अनुसार वैश्विक भूख सूचकांक 2017 की सुची में भारत 100वें पायदान पर है। वैश्विक भूख सूचकांक की सुची में कुल 119 देश सम्मिलित हैं। आईएफपीआरआई के रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक भूख सूचकांक की सुची में शून्य अंक सर्वोच्च स्थिति को प्रकट करता है जबकि 100वां अंक गंभीर स्थिति को प्रदर्शित करता है। भारत वैश्विक भूख सूचकांक में 100वें स्थान के साथ अपने पडोसी देश बांग्लादेश से भी पीछे है। यह हमारे शासन व्यवस्था और विकास के लिए चिंताजनक स्थिति है।
भारत में बच्चों की कुपोषण दर उच्च है यद्यपि बच्चों का शारिरीक और मानसिक विकास प्रभावित होता है। बच्चों को उचित मात्रा में गुणवत्ता पूर्ण भोजन नसीब न हो पाना कुपोषण का मुख्य कारण है। हमारे देश में आज भी लाखों लोग अपना पेट भरने हेतु दो वक्त की रोटी के लिए मजबूर हैं। भारत में एक वर्ष में 10 फीसदी होने वाली आक्समिक मौतें का ठोस कारण भूखमरी है इसमें बच्चों की संख्या भी शामिल है। हमारे यहां उन बच्चों की हालत बद से बदतर है जो अपनी छोटी उम्र में अपना पेट भरने के लिए मजबूरन किसी कार्य को करने लगते हैं जो उनकी शारीरिक और मानसिक परिस्थितियों के अनुकूल नहीं है। भारत में विकास की बात करने वाली शासन व्यवस्था को वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की स्थिति को सुधारने की जरूरत है। देश में भूख से वंचित तबकों की संख्या को कम करने हेतु शासन व्यवस्था की विकासरूपी प्राथमिकता होनी चाहिए अन्यथा विकास के इस दौर में लोगों की भूख जैसी मूलभूत आवश्कताएं लगातार मृत्यू को पुकारती रहेगीं। आवश्यकता है कि देश को गरीबी और भूखमरी से उन्मुक्त करने के लिए पहल की जाए। फलस्वरूप विकास स्वयं तेज गति धारण कर लेगा और उस विकास में सभी भारतवासियों की खुशियां भारत को नई पहचान प्रदान करेगी।
अंकित कुंवर
(स्वतंत्र टिप्पणीकार)
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