मुजफ्फरनगर में कलिंगा-उत्कल एक्सप्रेस रेल हादसे ने साबित कर दिया है कि रेलवे सुरक्षा के नाम पर लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहा है। प्रारंभिक रिपोर्ट में जो तथ्य उजागर हुए हैं उससे साबित होता है कि सुरक्षा के नाम पर रेलवे में घोर लापरवाही बरती गई है। दुर्घटना इतनी भयंकर थी कि रेल के कुछ डिब्बे छिटक कर पटरी से दूर कालेज की इमारत से टकरा कर चाय की दुकान पर पलट गया। 25 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है और करीब 70 लोग घायल हुए हैं। प्रारंभिक रिपोर्ट के मुताबिक ट्रैक पर काम चल रहा था और न तो ट्रेन के ड्राइवर को कोई सूचना थी और न ही किसी प्रकार का “रेड मार्क” या लाल कपड़ा लगाया गया था। घटनास्थल पर ट्रैक मरम्मत से जुड़े औजार बरामद हुए हैं और पटरियां उखड़ी हुई मिली हैं और साफ जाहिर है कि इसमें घोर लापरवाही हुई है लेकिन उम्मीद के अनुसार इस बार भी लीपापोती होगी और जांच के नाम पर इस बार भी आतंकियों पर संदेह जताकर रेलमंत्री समेत सब साफ बच निकलेंगे। पिछले कुछ समय से रेल पटरियों पर होने वाली दुर्घटनाओं के मामले में यही सब हो रहा है। सुरेश प्रभु के रेलमंत्री रहते हुए पिछले तीन सालों में 6 रेल हादसे हुए हैं। इनमें सैकड़ों लोगों की जान गई है। हजारों लोग घायल हुए हैं। लेकिन रेलवे ने कोई सबक नहीं लिया। 28 दिसम्बर 2016 को रायबरेली के पास जनता एक्सप्रेस के कई डिब्बे पटरी से उतर गये थे, जिसमें 32 लोगों की मौत हुई थी और करीब 150 लोग घायल हुए थे। 20 नवम्बर 2016 को कानपुर के पास इंदौर-पटना एक्सप्रेस ट्रेन पटरी से उतरने से करीब 150 लोगों की जान चली गई थी। 21 जनवरी 2017 को जगदलपुर-भुवनेश्वर हीराखंड एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी और 40 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 70 लोग घायल हुए थे। लेकिन इस सबके बावजूद ऐसा लगता है कि रेलवे ने कोई सबक नहीं लिया है। रेलवे के आधुनिकीकरण और डिजीटल इंडिया का दंभ भरने वाले माननीय रेलमंत्री सुरेश प्रभु रेलवे के किसी यात्री के ट्वीट पर कहीं दवाई तो कहीं बच्चे के लिए दूध और किसी बीमार का लिए डॉक्टर की व्यवस्था करने और उसे अपने ट्वीटर एकाउंट पर खूब शेयर करते हैं, लेकिन रेल पटरियों पर दौड़ती मौत पर चुप्पी साध लेते हैं और दोष रेलवे की व्यवस्था पर नहीं बल्कि इसमें वह किसी तीसरे का हाथ होने का संदेह जताकर स्वयं और लापरवाह विभागीय अधिकारियों को बचाने में सफल हो जाते हैं।
रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने परियों पर बढ़ती रेल दुर्घटनाओं से चिंतित होकर गृहमंत्री को 23 जनवरी को पत्र लिखकर में हाल की रेल दुर्घटनाओं के मामलों की जांच एनआईए से कराने की मांग की है और आपराधिक एवं आतंकी गतिविधियों की आशंका की छह घटनाओं का उल्लेख किया। अपने पत्र में सुरेश प्रभु ने आंध्रप्रदेश कुनेरू स्टेशन पर हीराखंड एक्सप्रेस के पटरी से उतरने की घटना, दो मालगाड़ियों के कोरापुट-किरंदुल खंड पर पटरी से उतरने, घोड़ासहन स्टेशन पर कूकर बम की घटना, 1 जनवरी को कानपुर के पास पटरी को गहराई तक काटे जाने की घटना का पता चलने और बरौनी-समस्तीपुर स्टेशनों के बीच रेल पुल पर पटरियों को बाधित करने की घटनाओं का उल्लेख किया है। कानपुर में इंदौर-पटना एक्सप्रेस के पटरी से उतरने और करीब 150 लोगों के मारे जाने की घटना का उल्लेख करते हुए रेल मंत्री ने कहा है कि बिहार पुलिस ने एक साजिश का पता लगाया था कि देश में कुछ लोगों को रेल की पटरियों में तोड़फोड़ और नुकसान पहुंचाने के लिए प्रशिक्षित किया गया है ताकि ट्रेन पटरी से उतरे और कानपुर के पास दुर्घटना में इनके शामिल होने की संभावना है।
दरअसल रेलमंत्री का सारा ध्यान हवा-हवाई योजनाएं बनाने और उनका सोशल मीडिया के जरिए व्यापक प्रचार-प्रसार करने पर रहता है, इसलिए सारा दिन उनके ट्वीटर हैंडल से ट्वीट, रिट्वीट किये जाते हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। उनके की सहयोगी मंत्री रामदास अठावले के अनुसार गत वर्ष केवल एक सप्ताह 15 से 20 अगस्त को बीच मुंबई की लोकल ट्रेनों से हुए हादसों में 60 लोगों की मौत हो चुकी है।
भारतीय रेलों में अब सुरक्षा भगवान भरोसे है। सुरक्षा की बात छोड़ दीजिए रेलवे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता और सफाई के मिशन को भी पलीता लगा रही है। हाल ही में कैग ने खुलासा किया था कि पैंट्री कार का खाना कहीं-कहीं तो इंसान के खाने लायक भी नहीं है। कई जगहों पर गंदे पानी से खाना पकाया जाता है और दूषित होता है। देश के 74 रेलवे स्टेशनों और 80 ट्रेनों की जांच के बाद सीएजी ने कहा है कि रेलवे के साफ-सफाई के दावे में दम नहीं है। संसद में पेश ताज़ा रिपोर्ट में बताया गया है कि खाना कई जगहों पर ख़राब मिला और आदमी के खाने लायक नहीं था। खाने का सामान भी दूषित मिला और कहीं-कहीं तो एक्सपायरी डेट के बाद का खाद्य वस्तुओं का इस्तेमाल हो रहा था। गंदे पानी का खाना पकाने में इस्तेमाल किया गया और धूल एवं मक्खियों से बचाने के लिए खाना ढंका हुआ भी नहीं मिला और ट्रेनों में तिलचट्टे और चूहे मिले मिले जो खाद्यान्न के दूषित करते हैं और उसी खाने को रेल यात्रियों को परोसा जाता है। सुरेश प्रभु के रेलमंत्री बनने के बाद रेल किरायों में कई बार बढ़ोतरी हुई है। हर बार सुरक्षा और सुविधा के नाम पर किराया बढ़ाया जाता है और कहा जाता है कि रेल हादसों को रोका जाएगा और रेल सफर को सुरक्षित बनाया जाएगा। लेकिन रेल का पटरियों से उतरना लगातार जारी है। एक के बाद एक हादसे हो रहे हैं और ज्यादातर मामलों में रेलवे की लापरवाही उजागर हुई है। रेल हादसों को रोकने का रेलवे के पास कोई ठोस समाधान नहीं है और न ही कोई योजना है, यही कारण है कि रेलमंत्री ने रेल हादसों के लिए आपराधिक और आतंकी साजिशों को जिम्मेदार माना है और यही कारण है कि पटरियां उखड़ने की वजह से होने वाले हादसों की जांच एनआईए से कराने के लिए उन्होंने गृहमंत्री को पत्र लिखा है।
असल में पूर्ववर्ती रेल मंत्रियों की सारी कोशिश रेल भाड़ा कम रखने और पटरियों को चुस्त-दुरूस्त रखने की होती थी लेकिन नए रेलमंत्री का सारा ध्यान सोशल मीडिया और विशेषकर ट्वीटर पर और रेलवे स्टेशनों को चकाचक करने पर है, जिसके कारण रेल पटरियों का रखरखाव व निगरानी रेलवे अधिकारियों की प्राथमिकता में नहीं है और यह हादसों में बढ़ोतरी की वजह है। हर हादसे के बाद केन्द्र एवं राज्य सरकारें रेल यात्रियों का मौत पर मुआवजा का ऐलान करती हैं और अगले हादसे तक रेलवे की हालत जस की तस हो जाती है।
गत वर्ष कानपुर के पास इंदौर-पटना एक्सप्रेस रेल हादसे में 150 लोगों के मारे जाने के बाद रेलमंत्री ने चुस्ती दिखाते हुए रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिये थे कि रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी लोकोमोटिव से स्वयं पटरियों का निरीक्षण करेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि रेल पटरियों की वजह से कोई दुर्घटना न हो लेकिन रेल मंत्री और रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी उनपर अमल करना भूल गये हैं। असल में रेलमंत्री सुरेश प्रभु रेलवे पटरियों पर होने वाली दुर्घटनाओं से वाकिफ हैं और गत वर्ष सियालदह-अजमेर एक्सप्रेस के पटरी से उतरने के बाद हुई हाई लेवल मीटिंग में विशेष निर्देश दिये थे तथा पटरियों की सुरक्षा और रख-रखाव के लिए जापान और कोरिया की प्रणाली अपनाने और उनसे सीखने के निर्देश दिये थे और स्वयं पर पत्र लिखकर रेल पटरियों की सुरक्षा पर सुझाव मांगे थे। दरअसल जापान और कोरिया की रेलवे सुरक्षा और रख-रखाव प्रणाली सबसे सुरक्षित मानी जाती है और भारतीय रेलवे का सुरक्षा एवं रख-रखाव पर उनसे समझौता है लेकिन बावजूद इसके पटरियों पर दौड़ती मौत रेलवे की बड़ी चूक है और रेलमंत्री को रेल हादसे जिम्मेदारी लेते हुए पद से हट जाना चाहिए क्योंकि पिछले तीन सालों में रेलमंत्री की सबसे बड़ी उपलब्धि रेल यात्रियों को ट्वीटर मैसेज के जरिए समाधान प्रदान करना है। ट्वीटर पर रेल यात्रियों के मैसेज पर डॉक्टर, बच्चे के लिए दूध और पुलिस सहायता जैसी सहायता अच्छी पहल हो सकती है लेकिन इससे रेल दुर्घटनाएं नहीं रूक सकती, इसलिए उन्हें ट्वीटर से थोड़ा विश्राम लेकर वरिष्ठ रेल अधिकारियों को काम पर लगाना होगा और उन्हें आधुनिक टेक्नॉलाजी से रेल पटरियों को सुरक्षित बनाने के लिए निचले स्तर तक संसाधन उपलब्ध कराने होंगे व कर्मचारियों की टेक्नॉलाजी दक्षता बढ़ानी होगी।
विजय शर्मा