हेलो, अस्सलाम वालेकुम। मेरा नाम है आयशा आरिफ खान। मैं जो कुछ भी करने जा रही हूं, अपनी मर्जी से करना चाहती हूं। किसी के जोर, दबाव में नहीं। ये समझ लीजिए कि खुदा की दी जिंदगी इतनी ही होती है। डियर डैड, अरे कब तक लड़ेंगे अपनों से। केस विड्रॉल कर दो। अब नहीं लड़ना। प्यार करते हैं आरिफ से। उसे परेशान थोड़ी ना करेंगे। अगर उसे आजादी चाहिए, तो ठीक है वो आज़ाद रहे। प्यारी सी नदी, प्रे करती हूं कि ये मुझे अपने आप में समां ले, और मेरे पीठ पीछे जो भी हो,प्लीज़ ज्यादा बखेड़ा मत करना… यह अल्फाज गुजरात की आयशा के हैं। आयशा अब इस दुनिया में नहीं है। उसने सामाजिक प्रताड़ानाओं से ऊब कर साबरमती नदी में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। उसकी शादी आरिफ नामक युवक से हुई थी।
गुजरात की मासूम आयशा वीडियो बनाने के बाद साबरमती में छलांग लगानी पड़ी। इस घटना ने पूरे समाज को झकझोर दिया है। हम चांद पर बस्ती बसाना चाहते हैं जबकि धरती पर हैवानियत पाल रहे हैं। हम कितने गिर चुके हैं कि हमारे लिए प्रेम, समर्पण और परिवार नाम की संस्था से कोई मतलब नहीं रह गया है। हमारे लिए इंसानियत के बजाय पैसा सबकुछ है। आरिफ इंसान था उसे स्वस्थ शरीर मिला है। वह दहेज की मांग को ठुकरा सकता था। पैसे वह खुद कमा सकता था। फिर एक लड़की पर इतना जुल्म और अत्याचार क्यों हुआ। वह टूट कर बिखर गई और अंत में उसने मरने का फैसला लिया। कितनी दु:खद त्रासदी है हमारे समाज की। हजारों लड़कियां इस तरह की घटनाओं की शिकार होती हैं। आयाशा को भी कोई नहीं जनता, लेकिन उसके वायरल वीडियो ने मरी हुई इंसानियत को बेनकाब कर दिया। हमारे समाज में हाथरस, उन्नाव, बदायूं, निर्भया जैसी अनगिनत घटनाएं घट चुकी हैं लेकिन हमने क्या सीखा। हमारी संसद मेजें थपथपा कर एक नया कानून बनाती है, लेकिन सामाजिक कुरीति को मिटाने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं दिखती है।
हमने समाज को कितना असभ्य और असंवेदनशील बना दिया है। हमारी बेटियां समाज में सुरक्षित नहीं है। एक बाप अपनी हाथरस का एक बाप हमारा समाज उसे गोलियों से भून देता है। जिन दरिंदों ने उस बाप को गोलियों से भूना है अगर वही प्रक्रिया उसकी बेटी के साथ अपनाई जाती तो कैसा लगता ? घर के मुखिया के चले जाने के बाद उस माँ पर क्या गुजरती होगी। बेटी के हाथ पीले कौन करेगा ? भाइयों की माँग कौन पूरी करेगा। उनका सपना कौन बनेगा। योगी सरकार ने ऐसे अपराधी के खिलाफ रासुका लगा दिया है, लेकिन सवाल उठता है कि जिसका सबकुछ लुट गया उसका क्या होगा। इस तरह के अपराधियों के खिलाफ तेलंगाना पुलिस जैसा सलूक करना चाहिए।
बदलते वक्त के साथ समाज को अपना नजरिया बदलना होगा। समाज, सत्ता और सरकारों को मिलकर काम करना होगा। सबको सामाजिक पहल करनी होगी। जब तक समाज अपना दृष्टिकोण नहीं बदलेगा तब तक इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी। पीड़ा के विभाजन से बचाना होगा। आयशा और हाथरस की घटना समाज पर कलंक हैं। बेटियों की सुरक्षा सिर्फ नारों से नहीं हो सकती। हमें हिंदू और मुस्लिम की बेटी के फर्क से बचना होगा। कुरीतियों का हवन कर आयशा और हाथरस की बेटियों के लिए सुरक्षित माहौल और समाज का निर्माण करना होगा।
प्रभुनाथ शुक्ल