पांच वर्ष पूर्व जिन मुद्दों पर आम आदमी पार्टी ने भारतीय मौजूदा राजनीतिक दलों का घेराव कर सियासी जमीं तलाशना शुरू किया था। आज के दौर में कहीं न कहीं
पांच वर्ष पूर्व जिन मुद्दों पर आम आदमी पार्टी ने भारतीय मौजूदा राजनीतिक दलों का घेराव कर सियासी जमीं तलाशना शुरू किया था। आज के दौर में कहीं न कहीं
देश एक नए आयामी दौर से गुज़र रहा है। जिसमें राष्ट्रवाद की संकल्पना गहरी पैठ तो बना रही ही है, उसके साथ शिक्षण संस्थानों आदि के नाम परिवर्तन की बयार
मानुषी छिल्लर ने प्रियंका चोपड़ा सुष्मिता सेन और रीता रीता फारिया जैसी गिनी-चुनी महिलाओं के बाद एक बार पुनः मिस वर्ल्ड का खिताब देश को दिलवाया है । मिस वर्ल्ड
मध्य प्रदेश के लगभग 15 ज़िलों के 25 महाविद्यालयों में 162 आदिवासी छात्र प्रतिनिधियों ने जीत का परचम लहराया। जिसमें मीडिया की ख़बरों के मुताबिक पचास फ़ीसद स्थान लड़कियों ने
लोकतंत्र की छांव में फ़िर चुनावी धुन बज चुकी है। इस चुनावी फ़ेरी में अंतर है, तो वह राज्य का। इस बार राज्य है सरदार पटेल की भूमि। जिन्होंने देश
भारत महिला और पुरुष के बीच भेदभाव को मिटाने के मामले में चीन और बांग्लादेश जैसे अपने पड़ोसी मुल्कों से काफ़ी पीछे छूट गया है। जो बदलते भारत और उन्नतशीलता
आज के दौर की सामाजिक स्थिति को देखकर लगता है। क्या आज़ादी बाद चुनाव मात्र सिंहासन बदलने भर की रवायत बनकर रह गया है, क्योंकि जो असन्तुलन की खाई समाज
आंकड़े सिर्फ आहट की दस्तक़ नहीं देते, बल्कि सच्चाई से रूबरू कराते हैं। देश में लिंग-अनुपात के लगातार कम होने के जो आंकड़े हमारे सामने आ रहे हैं, वे न
दीपावली पर आतिशबाजी हमारी परंपरा रही है, लेकिन समाज और देशहित में अगर कोई पहल हो। तो उसपर सामाजिक और धार्मिक स्तर पर मतभेद उत्पन्न होना सही नहीं। दीपावली के
सभ्य समाज में व्यक्ति का महत्व होना चाहिए, उसके जाति का नहीं। हमारी युवा पीढ़ी को यह बात अपने ह्रदय में उतारनी होगी। भेदभाव और सामाजिक वैमनस्यता का दुष्परिणाम समाज
दशहरा असत्य पर सत्य की विजय। दुष्ट पर सज्जन की विजय का पर्व। सामाजिक दृष्टि से किसान जब फ़सल को काटकर घर लाते हैं, तो उसे भगवान की देन मानकर
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। हम विकाशशील से विकसित अवस्था में पहुँच रहें हैं। तो इस बदलाव के दौर में कहीं बेटियों का कत्ल , तो कहीं वंश को आगे
कर्जमाफी के नाम पर हुआ बहुत अब तलक का खेल किसान दर- दर भटक रहा, मौज कर रही सरकार कब तलक ये तमाशा चलेगा, नहीं पता है शायद किसी को,
युवाओं की भागीदारी जीवन में तीन पड़ाव अहम होते हैं। बचपन, जवानी और बुढापा। देश की वर्तमान स्थिति में परेशानी तीनों को है। बचपन देश में सुरक्षित नहीं, तो नौजवान
लोग कहते हैं बेटी को मार डालोगे,तो बहू कहाँ से पाओगे? जरा सोचो किसान को मार डालोगे, तो रोटी कहाँ से लाओगे? फ़िर भी किसान मर रहें हैं, तो आज
राम धारी सिंह दिनकर की ये चंद पंक्तियां आज की राजनीतिक व्यवस्था के लिए ही शायद कही गई थी। सदियों की ठंढी, बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज
सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। इस उक्ति का कोई अर्थ नहीं रहा। सड़क पर सरपट दौड़ती गाड़ियांए और उससे भी तेज़ सरपट भागती मौत। यह कहानी हमारी सड़कें रच रहीं
हम ऐसे देश में रहते हैं। जिसकी आत्मा संस्कृति और सभ्यता में निवास करती है। वर्तमान अवस्था में हमनें उस संस्कृति और सभ्यता को चुल्लू भर पानी में डुबो दिया
संविधान में मीडिया को लोकतंत्र को चौथा स्तम्भ माना जाता है। इस लिहाज से मीडिया का समाज के प्रति उत्तरदायित्व और जिम्मदरियाँ बढ़ जाती हैं। मगर क्या वर्तमान वैश्विक दौर
राजनीति और जनता का प्रत्यक्ष मिलन अब मात्र चुनावी हल-चल के वक़्त दिखता है, जब उसके प्रत्याशी जनता रूपी मत को अपना भगवान और उसके साथ तमाम वे रिश्ते- नाते
भारत की दो तिहाई आबादी अगर जेल से भी कम जगह में रह रही है। तो ऐसे में निजता के मौलिक अधिकार बन जाने के बावजूद छोटे होते मकान और