मस्ती भरी उमंगों से
अंगड़ाई ले अड़ी पतंग।
गुजारिश कर चली चली रे
रंगीन सपनों की लहरी के रंग।
नहीं किसी के गम ओ सितम
उड़ती जिंदगी जाने बन पतंग।
मकसद सिर्फ गगन का है रंग
अमीर गरीब सब उड़ाये पतंग।
इधर उधर डगमगाती चले डोर
गोते खाती पंथी सी हर ओर।
बहुत करें मनमानी गाती गीत
हवा आसमां से करती प्रीत।
फटी टूटी डोर से लड़खती
इस हाथ से उस हाथ चली जाती।
भारती पंछी सी उड़ती जाती
अटखेलियां कर धरती पर आती।
मंगल व्यास भारती
गढ़ के पास , चूरू राजस्थान